इस moral stories in hindi में एक राज के बेटे की कहानी है जिसमे राजा का बेटा जान बचाने के लिए अपने ही एक गुलाम के घर रहता था ।
ओर वह गुलाम राजकुमार को , जिंदगी जीने का तरीका सिखाता है और उसे प्यार के बारे में बताता है , इस मोरल स्टोरी में प्यार इंसानियत का पाठ पढ़ाया जा रहा है ।
इस कहानी का मोरल बताता है कि हमे सदा अपने फर्ज को पूरा करना चाहिए । इंसान को अपने कर्तव्य को सदा निभाना चाहिए ।
इस कहानी में life with the slave teaching love , के बारे में है , जब गुलाम राजकुमार को प्यार के बारे में बताता है ।
चलिए कहानी शुरू करते है ।
पहाड़ी में एक सुंदर राज्य था जहां का राजा बहुत ही घमंडी था , सदा अपने प्रजा से कर वसूल करता , जनता को परेशान करता ।
पर भौगोलिक स्थिति में वह राज्य बड़ा ही सुंदर था , नदी खेत जंगल , सारी प्राकृतिक संपदा से भरपूर ।
राजा का नाम था जयवर्धन , राज का एक पुत्र था ,सूर्य वर्धन ।
जैसे पिता वैसे ही बेटा , घमंडी ।
वह अपने महल के सेवको से बहु ढंग से बात नही करता था ।
अपने से बडे, वृद्ध सेवको को भी परेशान करता था ।
राजा बडा बहादुर था , ओर उसकी जनता जानती थी कि यह हमपर कभी आपदा नही आने देगा ।
राजा का बेटा बहुत कायर था उसे युद्ध करना भी नही आता था ।
राजा उसे सीखने की कोशिस करता परन्तु वह कभी नही मानता।
एक दिन राज्य पर दुश्मनो ने हमला कर दिया , 5 दिन तक युद्ध चलता रहा परंतु जीत के कुछ आसार नाजर नही आ रहे थे ।
राजा को बेटे की चिता थी क्यो की वह युद्ध नही जानता था ।
तब राजा ने एक फैसला किया , जो बहुत कठिन था परंतु उसके वंश को बचाने कर लिए इस करना जरूरी थी ।
राजा ने अपने सबसे वफ़ादार सेवक को बुलाया , ओर कहा , सेवक तुम मेरे सबसे वफादार सेवक हो ।
तुम्ह युद्ध भी अच्छी तरंह से करना आता है ।
हम इस युद्ध को अभी नही जीत सकते परंतु एक दिन तुम्हारी बदौलत जरूर जीत जायँगे ।
सेवक ने कहा महाराज में आपकी बात समझा नही ।
तब राजा ने कहा सेवक तुम मेरे पुत्र और यह स्वर्ण मुद्रा लेकर कहीं चले जाना मेरे पुत्र को अपने बच्चों के साथ ही पालन ।
ओर सभी को युद्ध कला में माहिर करना । तब वापिश आना ।
ओर अपने राज्य और जनता को बचा लेना ।
सेवक ने कहा महाराज में आपकी सेवा के लिये बना हूँ मै आपके लिए जान भी दे सकता हूँ ।
परंतु अब आपको छोड़कर कैसे भाग जाऊं ।
तब राजा ने कहा तुम मेरे लिए नही राज्य की सेवा के लिए बने हो यदि हम मारे गये तो इन्हें कोई नही बचा पाएगा ।
सेवक मान गया ।
अब राजा ने अपने बेटे से कहा , बेटे मेने आज तक तुम्हें कितनी बार कहा था कि तुम युद्ध करना सीख लो , परंतु तुमने ऐसा नही किया ।
Read also
पुत्र आज तक अपने राजकुमार होने पर जितना घमंड किया उसे भूल जाओ , अब तुम भी एक सामान्य इंसान हो ।
यदि यहां रहे तो मारे जाओगे , परंतु यदि, सेवक के साथ गये तो युद्ध करना सीख कर , वापिश आना , ओर अपनी प्रजा की रक्षा करना ।
अब तुम मेरे सेवक के साथ साथ जाओ ।
राजकुमार ने राजा को गले लगाया , ओर चला गया । गुलाम का नाम विनोद था ,
अब विनोद ने अपने परिवार को लेकर रथ में भाग कर जंगलो में चले गये ।
राजा का बेटा आने ेेऐश ओर आराम को खोकर परेशान था ।
वह बिल्कुल भी गुलाम के बच्चों के साथ नही रह सकता था ।
परंतु अब विनोद आया और बोला राजकुमार आप भले ही राजकुमार थे ,परंतु अब आप एक साधारण इंसान है ।
तो अब आप मेरे बेटो से मित्रता कर ले इससे आपको दर्द भूलने में आसानी होगी ।
विनोद के 2 पुत्र और एक पुत्री थी । पुत्री सबसे, बड़ी थी ,तो पुत्री बोली , की राजकुमार आप कृपया यहाँ आराम कर ले , आपको हमारी वजह से कोई परेसानी नही होगी ।
अब दूसरा दिन था , विनोद की पुत्री , जिसका नाम दीपाली था , उसने राजकुमाद को सुवज5 उठाया और चाय दी , ओर कहा कि आपको आज से पिताजी के साथ शिकार पर जाना है , तो आप जल्दी से तैयार हो जाये ।
विनोद के दोनों बेटे भी शिकार पर चलने के लिए तैयार थे ।
अब चारो जंगल मे शिकार की तलाश में चले गये ।
विनोद ने राजकुमार को धनुष दिया , ओर कहा कि आप इससे शिकार करेंगे ।
।अब उन्हें हिरण दिखा ,राजकुमार को कहा कि इसे मारिये , परंतु राजकुमार को धनुष चलना नही आता था , तो तुरंत विनोद के एक बेटे ने तीर मार कर हिरण को मार डाला ।
यह देख कर राजकुमार चकित हो गये । वह घर आये थककर चूर हो चुके थे । तब विनोद की पत्नी ने जल्दी से भोजन बनाया , ओर राजकुमार ने भी भोजन खाया ।
वह अपने पिता और राजदरबार के बारे में सोच रहा था।
उसने जल्दी खाना खाया ओर जंगल मे चला गया ।
वह अब धनुष चलाना सीखना चाहता था ।वह एक पेड़ और निशान लगा कर उसे भेदने लगा , वह इसका तीर कभी निशाने पर नही जाता ।
तभी पीछे से एक तीर आया वे वह पेड़ के पार हो गया ।
दीपाली ने वह तीर चलाया था ।
यह देख कर राजकुमार दंग हो गया ।
उसने पूछा कि तुम यह चलाना कहा से सीखी , तब दीपाली बोली कि मेरे पिताजी सभी युद्ध कला में निपुण है , ओर उन्होंने ही हमे यह सब सिखया ।
तब रसजकुमार बोला में भी यह चालान सीखना चाहता हूँ क्या तुम मुझे सीखने में मदद करोगी ।
दिपांली ने राजकुमार को धनुष पकड़ना सिखाया , ओर तब तीर चलाना भी सिखाया ।
अब जल्द ही वह तीर चलाना सीख गया ।
राजकूमार सभी के साथ घुल मिल गया । अब तलवार की बारी थी , दिपांली ने ही राजकूमार को तलवार चलाना सिखाया ।
राजकूमार अब दिन भर विनोद के साथ , दोनो बेटो के साथ युद्ध का अभ्यास करता ।
अब विनोद को अपना गुरु मान चुका था । और विनोद की पुत्री दिपांली को प्रेम करने लगा था ।
अब वह चाहता था कि वह अपने घर राज्य को जीतकर अपनी शादी का प्रस्ताव रखे
पर अभी इस काम मे बहुत देरी थी ।
दूसरी तरफ राज्य पर दुश्मनो का अधिकार था , ओर राजा को बंधी बना दिया गया था ।
प्रजा को खूब यातना दी जा रही थी।
दुशमन राजकूमार के न मिलने पर भी चिंतित थे ।
वह बस राजकुमार को मार देना चाहते थे । कई महीने बीत गये परंतु राजकुमार नहीं मिला ।
फिर एक दिन दुश्मन के किसी गुप्तचर ने राजकूमार का ठिकाना देख लिया । और वह वहां आ गए ।
राजकूमार शिकार पर गया था , वह अब सभी युद्ध कला में निपुण हो चुका था ।
वह जब घर आया तो देखा वहां पर कुछ दुश्मनो की लाशें पड़ी है । घर में आग लगी है ।
वह समझ नही पाया ।
विनोद की पत्नी बहार बैठ कर रो रही थी ।उसने विनोद को देखकर कहा कि वह दिपांली को उठा कर ले गये , ओर कहा है कि राजकूमार को लाना उसे ले जाना ।
राजकूमार को गुस्सा आ गया । उसने सभी हतियार उठा लिए , ओर राज्य की तरफ चला गया ।पीछे विनोद ओर उसके पुत्र भी थे।
राजकूमार महल के बारे में जानता था तो वह सीधे ,महल के कोठरी में गया , ओर सभी बंधियों को छुड़ा दिया ।
अब राजा अपने पुत्र को काबिल देख लर बहुत खुश हुआ ।
राजकूमार ने कहा पिताजी आज हम अपने महल पर फिर से अधिकार पा लेंगे , ओर आगे चला जाता गया । राजा ने भी अपने हतियार उठा लिए , उन्होंने सभी महल के दुश्मनों के सैनिकों को मार डाला , ओर दिपांली के सामने गया ।
दिपांली ने राजकूमार को गले से लगा लिया ।अभ सभी महल के सिफाई मारे गये थे , तो राजा के सैनिकों ने दुश्मनो कर कपड़े पहन लिए , ओर उनकी सेना में मिल गए ,,ओर मौका देखते सभी को मार डाला ।
अब राजा की जीत हुईं । उसने अपनी जनता को सभी दुखो से मुक्त कर दिया ।
ओर अपने पुत्र को राजा घोषित किया ।
तभी विनोद भी आ गया था , राजा विनोद को देख कर बहुत खुश हूए उन्होंने विनोद को अपने राज्य का राजमंत्री बना दिया । और विनोद के दोनो बेटो को भी राजदरबार के जगह दी ।
दिपांली को राजकूमार के साथ राजा देख चुके थे इसी लिए दीपाली का विवाह राजकूमार के साथ किया गया ।
अब राजकूमार जिन्दगी का सबक सीख चुका था । इसी लिए उनसे सभी से विनम्रता से बात की अब उसका घमंड चूर हो चुका थस4 , वह चारो ओर बस प्रेम का संदेश फेल रहा था ।
अब राजकूमार का यह रूप देखकर सभी को खुसी हुई ।
ओर उसका राज्य पूरी तरह से खुश हो गया ।
इस कहानी में राजकूमार यह सब कुछ विनोद की वजह से कर सका । और कुछ हद तक इसपर दिपांली का भी हाथ था ।
दिपांली ने ही उसे सभी से प्रेम करना सिखाया था , इस दोनो की वजह से च अपनी जनता के मन की बात , प्रेम करना , युद्ध करना सीख सका ।
रसजकुमार सभी से अभद्रता करता था परन्तु बाद में वह सभी
के साथ अच्छा व्यवहार करने लग गया ।
हमे सदा लोगो के साथ विन्रमता पूर्ण व्यवहार करना चाहिए ।
हमे कभी भी घमंड नही करना चाहिए ।क्योंकि घमण्ड एक दिन जरूर टूट जाता है ।
मुझे उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी । कहानी को लाइक ओर शेअर जरूर करे ।
Read also
Comments
Post a Comment